क्या मैं ख़ुश होती?

आज अगर मैं लिख ना रही होती तो शायद मेरी ज़िंदगी कुछ और होती,
पर कैसी वाली और?
जैसी लोगों को पसंद आती है वैसी या जैसी लोगों के समझ में फ़िट हो पाती है वैसी?

मैं लिखती नहीं तो शायद आज मैं कही जॉब कर रही होती 
पर क्या मैं ख़ुश होती?
मैं आज लिखती नहीं तो मेरे पास खुद को सम्भालने के लिए शायद दोस्त तो होते 
पर क्या वो मेरे भीतर के ख़ालीपन को भर पाते?

हाँ, मैं लिखती नहीं तो थोड़ी जानी ना जाती 
और मेरे दोस्त जो अब अनजान हो गाए है वो अपने होते 
कुछ परिवार के सदस्य यूँ मुझसे चिढ़ते नहीं 
और कुछ लोग साथ खड़े होते 
पर क्या मैं ख़ुश होती?

ज़िंदगी साधारण सी होती 
सीधा सीधा होता सब 
एक फ़िक्स इंकम होती 
और शायद अब तक बड़ा घर और गाड़ी भी होती 
पर क्या मैं ख़ुश होती?

मैं ख़ुश हूँ क्यूँकि लिखना सिर्फ़ एक कला नहीं
एक ज़िम्मेदारी है 
इतनी उल जलूल  की बातों के बीच अगर आप कुछ ऐसा कर जाओ 
जो किसी के काम आजाए तो फिर क्या बात है 
जब दुनिया भर के लोग आपके लिखे हुए को पढ़कर आपको मेल करें 
अपनी तकलीफ़े आपसे साँझा करे और आप उनका दर्द थोड़ा कम कर पाओ तो फिर क्या बात है 

मैं लिख के ख़ुश हूँ, और ख़ुश होकर लिखती हूँ 
क्यूँकि अपने हर लेखन के साथ मैं थोड़ा और जी लेती हूँ 
चीज़ें और साफ़ होने लगती है 
मैं बेझिझक, बिना डरे अब अपनी बात कहती हूँ  
अकेली ही सही पर कम से कम अपने साथ तो रहती हूँ 
मैं ख़ुश हूँ कि मैं लिखती हूँ ।
--प्रियंका©


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