आख़िर क्या है मानसिक स्वास्थ्य और क्यों जरुरी है मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा? क्या मानसिक स्वास्थय वाक़ई में आपके शारीरिक स्वास्थय को हानी पंहुचा सकता हैं ?
जानिए ऐसे कई सवालों के जवाब मेरे इस ब्लॉग में । मैं अपने दोनों ब्लॉग वर्चुअल सियाही और सैनिटी डेली पर मानसिक स्वास्थ्य, तनाव और रिलेशनशिप्स जैसे विषयो पर 1000 से अधिक आर्टिकल्स लिख चुकी है , मेरे लिखे हुए शब्द मेरी ज़िन्दगी से होकर गुजरते है और कुछ मेरी सीख से होकर।
मैं पिछले 5 साल से अपनी कलम की ताक़त से मानसिक स्वास्थ्य की तरफ अपनी और से जागरूकता फैलाने की कोशिशों में जुटी हूँ । इस ब्लॉग के माध्यम से मैं और लोगो से जुड़ना चाहूंगी और उन्हें समझाना चाहूंगी की जिस प्रकार हम अपने शरीर का ध्यान रखते है ठीक उसी प्रकार हमे अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए । अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना है ।
कैसे करें मानसिक स्वास्थ्य पे चर्चा ?
कभी कभी सिर्फ एक रिमाइंडर काफी होता है आपको ये याद दिलाने के लिए की दो पल ठहर जाओ, चैन से बैठ जाओ और इतना भी खुद को ना खींचो की थक कर टूट ही जाओ , तो बस मेरे इस ब्लॉग को एक माध्यम समझ लीजियेगा ऐसे बातें आपको याद दिलाने के लिए ।
मैंने हाल ही मैं अपनी पहली कविता की किताब प्रकाशित की है जिसका नाम है “अर्धविराम”, जो की मेरा प्रयास है पढ़ने वाले के मन में मनोबल और उम्मीद जगाने का । असल ज़िन्दगी में यही तो होता है ना हम सब के साथ, हसी के मुखोटे पहने हम सब अपने कामो में लग जाते है और पीड़ा, थकान, तनाव को दबाये चले जाते है, जब तक चल पाते हैं।
कैसे करें मानसिक स्वास्थ्य पे चर्चा ? हमारे समाज में कैसे मानसिक स्वास्थ्य की कोई जगह ही नहीं है, औरतों से उम्मीद की जाती है की वो निस्वार्थ होकर अपना घर परिवार संभाले और मर्द को दर्द हो ही नहीं सकता, ऐसी मानसिकता से निज़ाद कैसे मिले हमारे समाज को की हम खुलकर अपने मन का हाल किसीसे बाँट सके और सामने वाला भी बिना हमे आंके और परखे निष्पक्ष होकर बस हमे सुने और थोड़ा आश्वासन देते हुए हमारी हिम्मत बढ़ाये।
मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थय जितना ही महत्वपूर्ण है बल्कि अगर समय रहते हम अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देंगे तो ये आगे जाके हमे कई प्रकार कि शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है ।
मानसिक स्वास्थ्य से जुडी समस्याए
विश्व स्वास्थ्य संगठन, मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहता है कि यह “सलामती की एक स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है।
मानसिक स्वास्थ्य के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है की मन के घाव दिखाए नहीं देते, उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती और ना ही कोई चोट दिखाई देती है इसीलिए समान्यतर लोग इसे मानते ही नहीं, कोई अगर कहे की उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा तो या तो उसका मज़ाक उदा दिया जाता है या फिर उसे सुना ही है जाता और मेन्टल या पागल कह दिया जाता उसकी इस सोच पर। पर हर इंसान जो किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुज़र रहा होता है वो पागल नहीं होता बल्कि उसकी स्थिति तक उसे पहुंचने में कही ना कही इस समाज और उसके आस पास के लोग ही काफी हद तक ज़िम्मेदार होते है और फिर यु उससे हाथ झटक लेते है जैसे की वो कितने अनजान थे इनसब से।
कैसे करे शुरआत ?
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति थोड़ी जागरूकता से हम इस बदलव की पहल कर सकते है, देखा जाए तो बहुत आसान है। हमे बस इंसानियत निभानी है, अपने शब्दों के चुनाव पर ध्यान रखना है, लोगो को लिए खुलकर अपनी बात कहने का माहौल बनाना है। अपनों के लिए मौजूद रहना है और यह सब बिलकुल भी कठिन नहीं है, बस चाहिए तो थोड़ी संवेदनशीलता और अपनापन, जहा आप किसी को इतना सुरक्षित महसूस करा पाए की वह अपनी मन की बात आपसे खुलकर कह पाए ।
अपना और अपने आस पास के लोगो का ख्याल रखें, कोई सवाल या सुझाव हो तो निचे कमेंट बॉक्स में लिखे।
प्रियंका