अब मुझे डर नहीं लगता
गिर जाने से
अकेले चलने से
थकने से
हारने से
रोने से
मैंने ये खेल खेलना नहीं सीखा
पर हर खेल को नया रूप देना सीख लिया है
मुझे शुन्य से अब डर नहीं लगता
खुद को बार बार खड़ा करने से डर नहीं लगता
वो हद बहुत पीछे छूट गयी
जिस हद ने मेरी सीमा तय की थी
मैं वो सरहद छोड़ आयी हु
मैंने आगे बढ़ने की ठानी है
हर खेल में बस खुदसे लड़ने की ठानी है
और खुदको ही हासिल करने की ठानी है
प्रियंका
Very brave girl!Thanks for sharing.Take care.
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Thank you. Take care
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Most welcome.🌹👍🙏
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सुंदर कविता है दोस्त🌼❤😃
Ageyaa जी की कविता याद आ गई
जीतना कैसे होता है
यह मैं नहीं जानता,
और हारना मैं कभी नहीं चाहता,
बिलकुल नहीं चाहता,
पर हारना चाहिए कैसे,
यह मैं जानता हूँ।
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Waah shandaar! Thank you 🙂
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